Thursday, April 24, 2014

मोड़ माड़ के बटुए में

मोड़ माड़ के बटुए में
रख तो रही हो हिफाज़त से
पर ये मेरी यादें हैं
तुम भूलोगी कुछ पल में

बिसराए लम्हों की कोई
कीमत कहाँ होती है कभी 
हिलते डुलते रहते हैं बस
ये धड़कन की हलचल में 

टकरायेंगी कभी कहीं जो
ये बटुए की सफाई में
काई जैसी उभरेंगी फिर
आज बनकर ये कल में

कम से कम झूठे वादे की
एक निशानी इन पे लगा दो
ताकि लगती रहें ज़रूरी
इस पल में कभी उस पल में...

- 19th April 2014

No comments: