Thursday, April 24, 2014

मैं रंगा अपने ही रंग में

मैं रंगा अपने ही रंग में,
मैं डूबा अपने अन्दर।
मैं सुनता बस अपनी बातें,
मैं बस मैं होता अक्सर।

मैं खुद से नाराज़ भी रहता
मैं खुद से मनता पहरों
मैं अपने ही मन का जोगी
मैं खुद में रमता पहरों
मैंने खुद से दोस्ती की
खुद अपना दुश्मन बनकर।

मैं सुनता बस अपनी बातें,
मैं बस मैं होता अक्सर।

मैंने मैं को भूला भी है
फिर उतना ही याद किया
मैंने मैं से माँगा जो भी
उसने मैं के बाद दिया
अब मैं हूँ और मैं है मेरा
जो अब है मुझसे बेहतर।

मैं सुनता बस अपनी बातें,
मैं बस मैं होता अक्सर।

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