Sunday, May 25, 2014

चलते चले

चलते चले जिन रास्तों पे
बिखरे फिरे जिन मोड़ों पे
आज उन राहों पे कोई
हमसफ़र दिखता नहीं।

कल ही की तो बात थी
सुबहा की गर्म चाय की
चुस्कियों में थे ठहाके
इक जोश था इक आग थी
आज हैं बस सर्द आहें
पहचान है, रिश्ता नहीं।

मैं सफ़र में था मुझे
कोई साथ है एहसास था
सरगोशियाँ बराबर रही
जो कुछ भी था वो ख़ास था
बादल अभी भी हैं वही
पर प्यार बरसता नहीं।

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