Sunday, November 16, 2014

माँगा था वो

माँगा था वो मिला नहीं
फिर भी मुझको गिला नहीं

कहने को अम्बर से आगे
अरमानों को लेकर भागे
सपने बैठ सिरहाने जागे
नींदों का सिलसिला नहीं

खुद से हारे सबसे जीते
बाहों पर तमगों को सीते
कितने मौसम बरसे बीते
फूल आस का खिला नहीं

यूँ तो सबका कहना माना
जाने क्या था मन को पाना
जंग जीत कर हमने जाना
जीतना था ये किला नहीं

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