Tuesday, August 18, 2015

याद रह जाता है

सोच समझ कर बैठ अकेले
मन हर बात को बिसराता है।
जो भुलाते नहीं बनता
वो याद रह जाता है।

धुँधली तस्वीरों की ज़बानी
सुनते रहता है कहानियाँ
भरते रहता है खांचों में
टूटे सपनों की किर्चियाँ
अक्सर पन्ने का फटा सिरा
किस्सा कोई कह जाता है
जो भुलाते नहीं बनता
वो याद रह जाता है।

कभी मूँद आँखें लेट कर
पलकों में पल भर लेता है
जो हो सकता था, हुआ नहीं पर
उसको अपना कर लेता है
यादों पे पहरा नहीं होता
दरिया है, बह जाता है
जो भुलाते नहीं बनता
वो याद रह जाता है।

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