Friday, September 18, 2015

मन करता है...

मन करता है रोक लूँ बढ़ के
इस जाती हुई शाम को
और पूरा हो जाने दूं
तुम्हारा वादा
किसी शाम मिलने आने का

देख लूं ठंडी ओस पहन कर
बह लूं थोड़ा पत्तों से छन कर
छिप जाऊं कभी धूप ओढ़ कर
सो जाऊं कभी छाँव बन कर
पल बीते आने तक तुम्हारे
वक़्त ना आये जाने का

फिर भी जो तुम ना आओ
और फिर बीते इक शाम यूँ ही
फिर लहरों पे बहा दूं मैं
लिख के तुम्हारा नाम यूँ ही
फिर ढूँढूं मैं कोई बहाना
इस दिल को बहलाने का

Manasvi 4th Sept 2015

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