Thursday, June 9, 2016

एक बादल

बस यूँ ही बरस के गुज़र गया
एक बादल इधर से किधर गया

दो बूँदें जाने कहाँ गिरी?
जाने किस मिटटी की बांछें खिली?
जाने किस दिल की प्यास बुझी?
बिन मौसम देखो आया वो
जो वादा कर के था मुकर गया

तुम लौट के आखिर आये क्यों?
क्या अपना कुछ यहाँ भूले हो?
या भटके हो किसी राही सा?
कुछ भी हो, हम तो खुश हैं कि
एक पल सुबह का संवर गया

- Manasvi 4th March 2016 (It rained today)

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