Thursday, June 9, 2016

ख्वाबों से यारी हुई तो



ख्वाबों से यारी हुई तो
नींदे रूठ गयी हैं
पल में सो जाने की आदत
कब की छूट गयी है


पहले नींद नहीं आई
कि कल क्या होगा जाने
फिर सोना चाहा तो
सपने आ बैठे सिरहाने
दबे पाँव आके सच्चाई
उम्मीदें लूट गयी है
पल में सो जाने की आदत
कब की छूट गयी है


पहले रिश्तों फिर किश्तों
की खातिर दौड़े भागे
दिन दिन भर मीलों चले
कितनी रातों जागे
वादे निभाये औरों से
खुद को दी कसमें टूट गयी हैं
पल में सो जाने की आदत
कब की छूट गयी है

Manasvi
25th May 2016

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