Thursday, June 9, 2016

तुम मेरी आँखों पे रख दो

तुम मेरी आँखों पे रख दो
थोड़ी आँच हथेली की
मैं भी सपने जला के देखूँ
कितना रंग बदलता है

क्या फिर मन उन्ही अरमानों की
राह में खोना चाहेगा?
फिर माँगेगा दुआ वही,
उसी चाँद के पीछे भागेगा?
क्या उसी झूठे वादे से
अब भी ये बहलता है?

हो सकता है कुछ ना बदले
सपना झुलसे पर रहे वही
आँसू बन थोड़ा सा पसीजे
पर आँखों से बहे नही
कब किस साँचे में ढल जाए
सपना रोज़ पिघलता है

- मनस्वी
25 april 2016

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