Tuesday, November 14, 2017

याद नहीं

तुमसे कितना गहरा था
याराना याद नहीं
क्यों बिछड़ा था तुमसे
वो फ़साना याद नहीं

तुमको मनाने की सारी
कोशिशें याद हैं
तुमसे रूठ जाने का
बहाना याद नहीं

कभी तो हुआ था यूँ भी
गिले गिनाए थे सारे
दिल की बात कहते हुए
हिचकिचाना याद नहीं

रात गुज़ारी थी काँधे पे
सिर रख कर सुबकते हुए
पर गोदी में छुपा के सिर
सो जाना याद नहीं

कुछ तो था जो सही नहीं था
कुछ तो था जो अधूरा था
याद बहुत से पल हैं पर
ज़माना याद नहीं


14 Nov 2017

1 comment:

WordsPoeticallyWorth said...

Greetings from the UK. Good luck to you and your endeavours.

Thank you. Love love, Andrew. Bye.